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थोड़ा है

थोड़ा है थोड़े की जरूरत है जिन्दगी फिर भी यहां खूबसू रत है
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व्योमकेश बख्शी

यूं तो जासूसी के धारावाहिक या कथा कहानियां मुझे बेहद पसंद है । लेकिन जासूसी कथा मैं जो सबसे ज्यादा मुझे पसंद है वह है व्योमकेश बख्शी । यह धारावाहिक के रूप में दूरदर्शन में आता था और मेरा सबसे फेवरेट धारावाहिक था । इसके करैक्टर ब्योमकेश बक्शी उनके मित्र अजीत बनर्जी मेरे फेवरेट हीरो थे। कुंदन शाह द्वारा निर्देशित यह धारावाहिक मुझे बेहद पसंद था। धारावाहिक की लोकेशन कहानी को कहने का अंदाज बेहद ही बेहतरीन था। ब्योमकेश बक्शी जिनका करैक्टर रजित कपूर ने बेहद ही बेहतरीन तरीके से अभिनित किया था और उनके मित्र अजीत बनर्जी का करैक्टर बी रैना द्वारा बेहतरीन अंदाज से अभिनीत किया गया था । आज भी यूट्यूब पर इसे देखने में बार-बार देखने में उतना ही मजा आता है हर बार ।

दीपावली

आतिशबाजी, दीए, मिठाईयां और ढेर सारी खुशियों का त्यौहार है दिवाली। इंतजार महिनों पहले से रहता था। मुर्गा बम सुतली बम लक्ष्मी बम हवाईयां फुलझड़ीयां अनार चकरी इनकी लिस्ट तैयार रहती। रोशनी से घर सुंदर लगता था।

रोहड़ू

हिमाचल प्रदेश राज्य के शिमला जिला के सुदूर एक छोटा सा  नगर  है रोहरू। पब्बर नदी के किनारे पर बसा यह नगर काफी उन्नति कर गया है। नया बस अड्डा, एक बेहतरीन अस्पताल, स्कूल, कॉलेज और कई इंस्टिट्यूट्स का घर है रोहडू। 1984 में केवल कुछ ही दुकानों, एक छोटा सा बस अड्डा भर था। नगर में रामलीला मैदान था जहां पर कई आयोजन होते थे जब भी कोई पॉलीटिकल रैली कोई बड़ा नेता यहां आता तो वहां पर भाषण जरूर होता। लोग दूर दूर से इन आयोजनों में भाग लेने के लिए आते थे। नगर में मेरी जानकारी के अनुसार उस समय केवल दो वीडियो घर थे यहां पर लोग फिल्में देखने आते थे। धीरे-धीरे बाजार का विस्तार होता गया यहां पर काफी सरकारी संस्थान भी खोले गए। नया पोलेटेनिकल कालेज बना। उस कालेज के पीछे का मैदान हमारे खेलकूद का केन्द्र था। पास में ही पी डब्लु डी का रेस्टहाउस था और उसका पार्क शाम को लोगो से भर जाता था। गेट के पास HRTC का वर्कशाप था अब वहा पर पार्क बन गया है । बाजार के मध्य में किताबों की दुकान थी जहा से पूरे नगर के लिए अखबार भेजी जाती। ये बात अलग है कि ये अखबार दोपहर बाद ही लोगों को उपलब्ध होते थे क्योकि ये अखबार चंडीगढ़ आ

बाल साहित्य

बचपन में  कहानियों और कथाओं का बड़ा शौक था । उस समय बाल साहित्य में सुमन सौरभ नंदन चंपक आदि यदि किताबें बेहद लोकप्रिय थी । कॉमिक्स का भी एक अपना बाजार था । कॉमिक्स में चाचा चौधरी, मामा भांजा, लंबू मोटू इत्यादि कॉमिक्स बेहद लोकप्रिय थी । हर रविवार के पंजाब केसरी का भी बेहद इंतजार रहता था क्योंकि उसमें भी एक कोना बाल साहित्य कहानियों लघु कथाओं या कॉमिक स्ट्रिप्स के लिए उपलब्ध रहता था । हम कई मित्र अपनी कॉमिक्स या या बाल साहित्य की किताबों को एक्सचेंज किया करते थे । इस तरह से हम उनका भरपूर मजा लेते थे । कोई नई किताब या कॉमिक्स बाजार में आती तो उसे खरीदने के लिए पैसों का जुगाड़ भी होता था । कभी-कभी पिताजी भी इन किताबों को पढ़ने के लिए लाया करते थे । धर्मयुग और सरिता जैसी किताबें भी घर लाया करते थे लेकिन उनमें सबसे ज्यादा मजा सिर्फ विज्ञापनों में को देखने में आता था । बाल साहित्य की किताबों की कहानियों को अपने मित्र मंडली में शेयर करने में भी आनंद आता था और उनसे सुनने में भी । घर में टीवी आने के बाद भी इन किताबों को पढ़ने में कोई अंतर नहीं आया ।